एकीकृत कीट प्रबन्धन के अंतर्गत उन सभी उपायों को सम्मलित किया जाता है, जिसमे पौधों को विभिन्न प्रकार के रोगो से बचाने तथा पौधों एवं भूमि की रोगो से लड़ने की शक्ति को बढ़ाया जाता है। एकीकृत कीट प्रबन्धन से कृषि की लागत कम होती है। कृषि उत्पाद बिक्री के समय सभी मानकों पर खरे उतरते है। भोजन विषयुक्त नहीं होता व पर्यावरण सुरक्षित रहता है।
- भूमि की गुणवत्ता की जाँचे :- एकीकृत कीट प्रबंधन का प्रथम चरण भूमि की गुणवत्ता की जाँच है। इसके लिए कृषि भूमि के प्रत्येक चक्र की जाँच आवश्यक है। सर्वप्रथम मेढ़ से 10 फ़ीट की दुरी को बनाते हुए प्रत्येक कोने से मिटटी को निकालते है। एक भाग खेत के बीचो बीच से लेते है। सारी मिटटी को किसी कागज या पन्नी में एकत्र कर उसको ठीक से मिलाते है। उसके बाद उसमे से लगभग 200 ग्राम मिटटी को जाँच हेतु प्रयोग शाला में भेजते है। मिटटी की जाँच रिपोर्ट एवं दिशानिर्देशों के अनुरूप पौधों में पोषण तत्वों का प्रयोग किया जाता है। जिससे अधिकतम उत्पाद प्राप्त होता है।
- ग्रीष्मकाल गहरी जुताई:- गर्मियों के समय में जब खेत प्रमुखता से खाली रहते है, खेतो की हैरो से गहरी जुताई करें। गहराई कम से कम 8 इंच की होनी चाहिए। खेत में सूर्य का प्रकाश पड़ने से खेत में मौजूद हानिकारक कीट,बीमारी फ़ैलाने वाले जीवाणु नष्ट हो जाते है एवं खेत में नमी रोकने की क्षमता भी अधिक हो जाती है।
- भूमि शोधन:- भूमि में पैदा होने वाले रोगो की रोकथाम हेतु भूमि का शोधन (साफ किया जाना ) आवश्यक है। भूमि शोधन हेतु बबेरिया बेसियाना एवं टाइकोडरमा विरडी का प्रयोग प्रमुख रूप से किया जाता है। प्रति एकड़ 1 किग्रा बवेरिया बेसियाना एवं टाइकोडरमा विरडी को 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलकर किसी नम स्थान पर रखें व् जूट की बोरी को नम करके इसे ढक दे। 7 दिनों तक नमी बनाकर रखें। एवं सीधे सूर्य के प्रकाश में न लाएं। इस मिश्रण का छिड़काव खेत में आखिरी जुताई समय करें। छिड़काव के समय खेत में नमी होना आवश्यक है।
- बीज शोधन:- बीज से पैदा होने वाले रोगो के रोक थाम हेतु बीज शोधन आवश्यक है। बीजो से होने वाली प्रमुख बीमारियां, जैसे- पत्ता मरोड़, जड़ गलन, तना गलन आदि प्रमुख है। बीज शोधन हेतु प्रमुख विधियां निम्नवत है -
- देशी गाय का गोबर 1 किग्रा
- गौमूत्र 1 लीटर
- हींग 10 ग्राम
- चूना 50 ग्राम
- दूध 250 मिली ० (यदि उपलब्ध है तो )
10 लीटर पानी में समस्त सामग्री को मिलाएं। सबसे अंत में दूध को मिश्रण में मिलाये। जिस बर्तन में मिश्रण को बनाया गया है। उसे किसी सूती कपडे से बाँध कर रखे। रोज दिन में दो बार चलाये। दो दिन में बीजामृत तैयार हो जायेगा। इस मिश्रण को बीज के ऊपर हलके से लगाये जिससे समस्त बीज के पर घोल की परत चढ़ जाये। छाया में सुखाने के बाद बीज का प्रयोग करें।
टाइकोडरमा विरडी के द्वारा:-
1 किग्रा बीज शोधन हेतु 5 ग्राम टाइकोडरमा को पानी में घोलकर बीज पर हलके हाथो से लगाएं। बीज पर किसी प्रकार का केमिकल लेप होने की स्थिति में बीज को गौमूत्र डालकर अच्छी तरह से साफ कर ले। उसके उपरांत उस पर टाइकोडरमा विरडी प्रति 1 किग्रा बीज पर 5 ग्राम के दर से अच्छी तरह हलके हाथो से मिलाएं। बीज को छाया में सुखाने के उपरांत बिजाई करें।
यदि आप नर्सरी के पौधे लगा रहे है। तो जमीन में रोपने से पहले पौधों की जड़ो को इस घोल में कम से कम 30 मिनट डुबा कर रखे। उसके बाद रुपाई करें।
टैप कॉप:- कुछ पौधे अपने खास रंग व गंध के कारण कीट पतंगों को अपनी और आकर्षित करते है। खेत में फसलों के साथ इनको भी प्रयोग करने से कीट पतंगों का प्रकोप मुख्य फसल पर कम हो जाता है। इस प्रक्रिया में खेत की मेढ़ो पर पीले पुष्प वाले फूल, तथा खेत के चारो और घने पौधे लगाए जिससे कीट मुख्य फसल तक न पहुंच पाएं।
पीले चिपचिपे कार्ड:- खेत के बीच बीच में पीले बोर्ड का प्रयोग करें। जिसमे किसी चिपचिपे पदार्थ को लगा दे। जिससे कीट पतंगे रंग पर आकर्षित होकर उसमे चिपककर समाप्त हो जाएँ। समय समय पर कार्ड को साफ़ करते रहे व् उस पर चिपचिपे पदार्थ लगाते रहे।
अन्य उपाय:- खेत से कुछ दुरी पर चिडियो के बैठने की व्यवस्था बनायें, जिससे वह शत्रु कीटो एवं उसके लार्वा को खाकर नस्ट कर देंगी। रोग ग्रस्त पौधों को नस्ट कर दे। खेत में बिजूका लगाए। मिश्रित खेती व् फसल चक्र अपनाएं, फसल पर लगातार निगरानी रखे, एक ही कीट नियंत्रक का प्रयोग बार बार न करें।
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